पिघलती रही में हर पल
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हर पल में पिघलती रही,
खुद जल जल सबको उजाला देती रही,
में पिघलती रही…………
हर साल मेरे जलने पर ,
बुझाने के लिए हवा देते रहे,
ना समझ में समजती ,
मेरी ये जलन देख नही पाते है,
पता न था जरुरत पर ,
फिरसे मुझे तो जलना है,
पर खुशी से में तो जलती रही,
उन्हें उजाला देने के लिए ,
में पिघलती रही……………
जीवन पूरा होता गया ,
जीने की उम्र ख़त्म होती चली ,
लगा जब में कुछ काम की नहीं ,
रख दी गई घर के एक कोने में ,
हर वक़्त अहेसास कराया गया ,
अब ये कुछ काम की नहीं ,
में पिघलती रही ………….
अचानक फिर मेरी याद आइ ,
ख़ुश होकर दीवानी में जी उठी ,
उनके बच्चों के में काम आइ ,
घिसती रही उनके बच्चों के बेग को ,
ताकि वो सरलता से चल सखे ,
में पिघलती रही………..
पता न चला कब घिस घिस चूर चूर हुई
अचानक आह!!! फिर कोने में फेंक दी ,
अब तो राह देखू बनाने वाले तेरी ,
कब मूँजें तू नवजीवन दे ,
पर अब में जलूँ तो तेरे लिए ,
जहाँ पिघल ने में उजाला देने में ,
जीवन हो जाए मेरा सफल ।
में पिघलती रही ………..
Jignasa
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