एे ज़िंदगी तु धीरे से भले फिसल रही है,
रोक न सकती हू तुझे, बस सोच रही हूँ ,
न रोक पाऊँ भले तुझे पर,
वो यादें कैसे ले जाएगी साथ तेरे,
वो बीते दिन ले जाएगी कैसे,
ए ज़िंदगी …………
कुछ दुख भरे दिन ले जा संग,
कुछ दर्द भरी यादें ले जा संग,
अच्छे दिन, मीठी यादें न छीन सके तु,
कर ली है क़ैद हमने उसे दिल की जेल में,
ए ज़िंदगी ……………
न दोस्त मिलेंगे तुझे, न दुश्मन भी देंगे,
दुश्मनों ने शिखाया जीना हमें ,
दोस्तों ने हर पल संभाला हमें ,
ए ज़िंदगी ………………
ग़म नहीं तेरे फिसल जाने का,
पाया बहुत गुज़ारी हुई ज़िंदगी में,
कुछ अपनें कुछ सपनें रहे मेरे पास,
तु क्या ले जाएगी संग तेरे,
ए ज़िंदगी …………….
फ़रियाद न तुझसे , न रंज में करु,
जितनी भी कटी अच्छी कटी,
लोग भले चाहे अाह!! अब ये ख़त्म हो,
पर में तुझे फिसलने का अफ़सोस करवाउ
ए ज़िंदगी ……………
जिज्ञासा
Comments
2 responses to “एे ज़िंदगी तु धीरे से भले फिसल रही है,”
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